
यूरिया खाद की बड़े पैमाने पर हो रही कालाबाजारी। किसानों का हो रहा शोषण। उतरौला (बलरामपुर)बलरामपुर जिले में जिलाधिकारी द्वारा खाद की कालाबाज़ारी पर रोक के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद उतरौला क्षेत्र में खुलेआम किसानों के साथ लूट जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। सरकार की मंशा है कि प्रत्येक किसान को सही दाम पर खाद उपलब्ध हो, लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व प्रशासनिक निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।उतरौला बाजार में स्थित बाल विकास कार्यालय के बगल स्थित एक निजी खाद गोदाम में खुलेआम उर्वरक को अधिक दाम पर बेचा जा रहा है। मीडिया कर्मियों की टीम ने जब मौके पर जाकर जानकारी जुटाई तो सामने आया कि किसानों को प्रति बोरी ₹450 तक में खाद बेचा गया है, जबकि सरकारी दरों के अनुसार यह मूल्य कहीं अधिक है।गांव गौरा निवासी किसान आकाश, मोहना पुर के महबूब, अक्सी बड़हरा के छोट्टन पुत्र मुंशी और हरहटा तुलसीपुर के उत्तम पुत्र राम उजागर ने बताया कि उन्हें प्रति बोरी ₹500 की दर पर खाद खरीदनी पड़ी, जबकि वे उम्मीद कर रहे थे कि सरकारी रेट के अनुसार उन्हें खाद ₹270 से ₹280 में मिल जाएगी।किसानों ने यह भी खुलासा किया कि बॉर्डर क्षेत्र के लोग भी इसी दुकान से खाद खरीद रहे हैं। आशंका जताई जा रही है कि यह खाद नेपाल सप्लाई की जा रही है, जिससे वहां धान अधिक कीमत पर खरीदा जा सके। इससे स्थानीय किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है – एक तो बारिश नहीं हो रही, दूसरे खाद की किल्लत और कालाबाज़ारी उनकी कमर तोड़ रही है।सावन के महीने में भी बारिश न होने से पहले से ही चिंतित किसानों को अब खाद की कालाबाज़ारी ने और परेशान कर दिया है। खेत सूखे पड़े हैं, सिंचाई के संसाधन सीमित हैं और अब जब खाद की आवश्यकता है तो उन्हें ऊंची कीमत पर खाद खरीदनी पड़ रही है। यह स्थिति सरकार की योजनाओं और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा करती है।जिलाधिकारी बलरामपुर ने पहले ही सख्त निर्देश दिए हैं कि खाद की कोई भी कालाबाज़ारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बावजूद इसके उतरौला क्षेत्र में खुलेआम यह अवैध व्यापार फल-फूल रहा है। किसानों की मांग है कि प्रशासन तत्काल प्रभाव से इस मामले की जांच कर दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे।जब अन्नदाता ही परेशान हो, तो राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। उतरौला के किसानों की पीड़ा आज सिर्फ खाद की नहीं, बल्कि व्यवस्था की उपेक्षा की भी कहानी कह रही है। आवश्यकता है सजग प्रशासन और सख्त कार्रवाई की, ताकि भविष्य में कोई भी व्यापारी अन्नदाताओं की मजबूरी को मुनाफे का जरिया न बना सके।

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